नागराज, ध्रुव, परमाणु, भोकाल, तौसी, हवालदार बहादुर, बांकेलाल, चाचा चौधरी, बिल्लू, पिंकी, साबू और ना जाने कितने ही किरदार जीवन का एक हिस्सा बन गए थे | अब जब में पीछे मूड कर देखता हूँ तो यह सोच कर ख़ुशी होती है की भले ही चोरी छुपे या लड़ झगड़ कर भी मैंने कॉमिक्स पढ़ी है तो अच्छा ही किया है, वरना जीवन की ये यादें कभी नहीं बना पाता |
जहाँ तक मुझे याद है कॉमिक्स पढने की खुमारी गर्मी की छुट्टियों में सर चढ़ कर बोलती थी | और कॉमिक्स खरीदना तो काफी महंगा सौदा था इसलिए लगभग हम सभी मित्र किसी ना किसी लाइब्रेरी के सदस्य बन जाते थे और किराए से कॉमिक्स ले आया करते थे | उन चौबीस घंटो के समय में सभी दोस्तों को एक दुसरे की भी कॉमिक्स ख़तम करनी होती थी तो बस फिर क्या कॉमिक्स लाइब्रेरी से ली और पढना चालू एक आधी तो घर पहुँचते पहुँचते ही ख़तम हो जाया करती थी |
शुरूआती दिनों में जहाँ से मुझे याद है कॉमिक्स का किराया होता था पचास पैसे और डाइजेस्ट का एक रुपैया लेकिन हाई रे महंगाई बाद में किराया तय हो गया था कॉमिक्स के दाम का दस प्रतिशत याने ८ रुपैये की कॉमिक्स ८० पैसे में | कॉमिक्स न सिर्फ आपकी कल्पना शीलता को एक नया आयाम देती है अपितु व्यवहारिक ज्ञान में भी वृद्धि कराती है | जैसे आप देख ही सकते है की कभी न कभी तो आपने अपने किसी मित्र के साथ साझेदारी में लाइब्रेरी खोली ही होगी, और कुछ चव्वनी अट्ठनी का मुनाफा कमा कर खुश भी हुए होंगे | लो जी बन गए आप उद्यमी (entrepreneur) !
लेकिन इन सब से बढ़कर बौद्धिक विकास में सबसे मददगार साबित होते थे मित्रो के साथ कॉमिक्सों पर गहन विचार विमर्श ! जी हाँ कौन सा नायक किस नयी शक्ति के साथ आया है, किस नायक को सबसे मुश्किल खलनायक से जूझना पड़ता था, यदि ये दोनों नायक साथ में आये तो ज्यादा अच्छा कौन लडेगा इत्यादि | बिना शक्तियों के दुश्मनों के मात देने वाला सुपर कमांडो ध्रुव मेरा पसंदीदा नायक हुआ करता था | और ध्रुव के खलनायको के ऊपर तो विचार विमर्श मैंने देशपांडे के साथ माइंड ट्री में रहते हुए भी किया था | उदाहरण के लिए चुम्बा, बौना वामन, चंडकाल हाँ लेकिन ध्रुव के दोस्त भी हुआ करते थे जैसे किरिगी, धनञ्जय, येती |
अब तो कई सालों से किसी की भी सुध नहीं ली है | पर मुझे अभी भी यकिन है की ये सभी नायक अपनी जान की बाजी लगा कर आज भी विश्व को बड़े बड़े खतरों से बचा रहे होंगे और इसलिए आप भारत में या यूरोप में या अमरीका में चैन की नींद सो पा रहे है !
A mail by my friend Kapil. I think so many of us would identify with the same. Plus I love his hindi writings (read a couple of his entries secretly in Bengaluru along with Mathuru ;)). Till he has his own blog, this one will be kept by me :).
Also for my friends doing MBA, this is what a Dimdima should feel like, so maybe something like this would have determined your pitch for selling Dimdimas.
Although this is a thinking of a kid 15 years back, things have changed now.
2 comments:
Though I couldn't relate to the post much because of my comics reading being limited to chacha choudhary, mainly because at that point in time I used to find sci-fi to hi-fi to be real (which is indeed the case) and somehow didn't quite develop a knack to read them.
But I loved the HINDI font, have read a paragraph in Hindi after I don't know how many years !
First, writing a post requires thinking and effort, second writing it in Hindi font, perfectly (well i didn't notice any error) is commendable. I request Kapil to start a blog, a blog in Hindi !
You have one regular reader for sure :)
hehe ...
nice post Desi !!
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