10-11:15 Am on 11th Mar'09
Shortest Holi ever for me, it started and ended pretty soon. But we won.
We won over the Kala Bandar of exams, quizzes, tension of assignments of the two end terms tomorrow.
But still Kala Bandar managed to win over a few... :(
Still BH and GH celebrated a quick, nice, rangeen, kichad bhari Holi. As always we have had maximum fun when the batch has been together.
Last year was a classic Holi, rooftop in Bangalore, sipping Kailasa made Thandai, Mithai and then drinking beer basking in sunlight, ekdum Shawshank Redemption ishtyle :)
Wishing a Happy Holi to everyone visiting the Blog.
Simply Confusing details on everything, peppered with overtly personal thoughts and buttered with some random codswallop once in a while. In short trying to not to do the above mentioned deeds while be-ing in Mumbai...
Tuesday, March 10, 2009
कॉमिक्स और हमारा बचपन
लुईस कैरोल की एलिस को कल्पना के उस अद्भुत संसार में जाने के लिए खरगोश महाशय के घर का रास्ता नापना होता था लेकिन मुझे (याने जब में बच्चा था) या मेरे जैसे कई भारतीय बच्चो को अपने घर के कुछ आधे किलो मीटर की परिधि में कोई सोनू या मनोज लाइब्रेरी ढूंढनी होती थी | उसके बाद तो बस अपने कल्पना के संसार में डूब जाने के लिए हम आजाद होते थे |
नागराज, ध्रुव, परमाणु, भोकाल, तौसी, हवालदार बहादुर, बांकेलाल, चाचा चौधरी, बिल्लू, पिंकी, साबू और ना जाने कितने ही किरदार जीवन का एक हिस्सा बन गए थे | अब जब में पीछे मूड कर देखता हूँ तो यह सोच कर ख़ुशी होती है की भले ही चोरी छुपे या लड़ झगड़ कर भी मैंने कॉमिक्स पढ़ी है तो अच्छा ही किया है, वरना जीवन की ये यादें कभी नहीं बना पाता |
जहाँ तक मुझे याद है कॉमिक्स पढने की खुमारी गर्मी की छुट्टियों में सर चढ़ कर बोलती थी | और कॉमिक्स खरीदना तो काफी महंगा सौदा था इसलिए लगभग हम सभी मित्र किसी ना किसी लाइब्रेरी के सदस्य बन जाते थे और किराए से कॉमिक्स ले आया करते थे | उन चौबीस घंटो के समय में सभी दोस्तों को एक दुसरे की भी कॉमिक्स ख़तम करनी होती थी तो बस फिर क्या कॉमिक्स लाइब्रेरी से ली और पढना चालू एक आधी तो घर पहुँचते पहुँचते ही ख़तम हो जाया करती थी |
शुरूआती दिनों में जहाँ से मुझे याद है कॉमिक्स का किराया होता था पचास पैसे और डाइजेस्ट का एक रुपैया लेकिन हाई रे महंगाई बाद में किराया तय हो गया था कॉमिक्स के दाम का दस प्रतिशत याने ८ रुपैये की कॉमिक्स ८० पैसे में | कॉमिक्स न सिर्फ आपकी कल्पना शीलता को एक नया आयाम देती है अपितु व्यवहारिक ज्ञान में भी वृद्धि कराती है | जैसे आप देख ही सकते है की कभी न कभी तो आपने अपने किसी मित्र के साथ साझेदारी में लाइब्रेरी खोली ही होगी, और कुछ चव्वनी अट्ठनी का मुनाफा कमा कर खुश भी हुए होंगे | लो जी बन गए आप उद्यमी (entrepreneur) !
लेकिन इन सब से बढ़कर बौद्धिक विकास में सबसे मददगार साबित होते थे मित्रो के साथ कॉमिक्सों पर गहन विचार विमर्श ! जी हाँ कौन सा नायक किस नयी शक्ति के साथ आया है, किस नायक को सबसे मुश्किल खलनायक से जूझना पड़ता था, यदि ये दोनों नायक साथ में आये तो ज्यादा अच्छा कौन लडेगा इत्यादि | बिना शक्तियों के दुश्मनों के मात देने वाला सुपर कमांडो ध्रुव मेरा पसंदीदा नायक हुआ करता था | और ध्रुव के खलनायको के ऊपर तो विचार विमर्श मैंने देशपांडे के साथ माइंड ट्री में रहते हुए भी किया था | उदाहरण के लिए चुम्बा, बौना वामन, चंडकाल हाँ लेकिन ध्रुव के दोस्त भी हुआ करते थे जैसे किरिगी, धनञ्जय, येती |
अब तो कई सालों से किसी की भी सुध नहीं ली है | पर मुझे अभी भी यकिन है की ये सभी नायक अपनी जान की बाजी लगा कर आज भी विश्व को बड़े बड़े खतरों से बचा रहे होंगे और इसलिए आप भारत में या यूरोप में या अमरीका में चैन की नींद सो पा रहे है !
नागराज, ध्रुव, परमाणु, भोकाल, तौसी, हवालदार बहादुर, बांकेलाल, चाचा चौधरी, बिल्लू, पिंकी, साबू और ना जाने कितने ही किरदार जीवन का एक हिस्सा बन गए थे | अब जब में पीछे मूड कर देखता हूँ तो यह सोच कर ख़ुशी होती है की भले ही चोरी छुपे या लड़ झगड़ कर भी मैंने कॉमिक्स पढ़ी है तो अच्छा ही किया है, वरना जीवन की ये यादें कभी नहीं बना पाता |
जहाँ तक मुझे याद है कॉमिक्स पढने की खुमारी गर्मी की छुट्टियों में सर चढ़ कर बोलती थी | और कॉमिक्स खरीदना तो काफी महंगा सौदा था इसलिए लगभग हम सभी मित्र किसी ना किसी लाइब्रेरी के सदस्य बन जाते थे और किराए से कॉमिक्स ले आया करते थे | उन चौबीस घंटो के समय में सभी दोस्तों को एक दुसरे की भी कॉमिक्स ख़तम करनी होती थी तो बस फिर क्या कॉमिक्स लाइब्रेरी से ली और पढना चालू एक आधी तो घर पहुँचते पहुँचते ही ख़तम हो जाया करती थी |
शुरूआती दिनों में जहाँ से मुझे याद है कॉमिक्स का किराया होता था पचास पैसे और डाइजेस्ट का एक रुपैया लेकिन हाई रे महंगाई बाद में किराया तय हो गया था कॉमिक्स के दाम का दस प्रतिशत याने ८ रुपैये की कॉमिक्स ८० पैसे में | कॉमिक्स न सिर्फ आपकी कल्पना शीलता को एक नया आयाम देती है अपितु व्यवहारिक ज्ञान में भी वृद्धि कराती है | जैसे आप देख ही सकते है की कभी न कभी तो आपने अपने किसी मित्र के साथ साझेदारी में लाइब्रेरी खोली ही होगी, और कुछ चव्वनी अट्ठनी का मुनाफा कमा कर खुश भी हुए होंगे | लो जी बन गए आप उद्यमी (entrepreneur) !
लेकिन इन सब से बढ़कर बौद्धिक विकास में सबसे मददगार साबित होते थे मित्रो के साथ कॉमिक्सों पर गहन विचार विमर्श ! जी हाँ कौन सा नायक किस नयी शक्ति के साथ आया है, किस नायक को सबसे मुश्किल खलनायक से जूझना पड़ता था, यदि ये दोनों नायक साथ में आये तो ज्यादा अच्छा कौन लडेगा इत्यादि | बिना शक्तियों के दुश्मनों के मात देने वाला सुपर कमांडो ध्रुव मेरा पसंदीदा नायक हुआ करता था | और ध्रुव के खलनायको के ऊपर तो विचार विमर्श मैंने देशपांडे के साथ माइंड ट्री में रहते हुए भी किया था | उदाहरण के लिए चुम्बा, बौना वामन, चंडकाल हाँ लेकिन ध्रुव के दोस्त भी हुआ करते थे जैसे किरिगी, धनञ्जय, येती |
अब तो कई सालों से किसी की भी सुध नहीं ली है | पर मुझे अभी भी यकिन है की ये सभी नायक अपनी जान की बाजी लगा कर आज भी विश्व को बड़े बड़े खतरों से बचा रहे होंगे और इसलिए आप भारत में या यूरोप में या अमरीका में चैन की नींद सो पा रहे है !
A mail by my friend Kapil. I think so many of us would identify with the same. Plus I love his hindi writings (read a couple of his entries secretly in Bengaluru along with Mathuru ;)). Till he has his own blog, this one will be kept by me :).
Also for my friends doing MBA, this is what a Dimdima should feel like, so maybe something like this would have determined your pitch for selling Dimdimas.
Although this is a thinking of a kid 15 years back, things have changed now.
Friday, March 06, 2009
Hardly anything great to Talk about...or maybe
When I used to read Naresh's blog while he was doing MBA I always thought it is surely something which I will enjoy. Talking about things which we {include DAIICT E-Wing, Bangalore BakarBandhooze} had made a habit of was about to find its glorious destiny at a b-school.
At almost of the end of three trims it has been,
- a fight for marks, dirty one at times, me being a party to this constant usage of rand() function...
- my database of facts eroding, that too eroding badly. Desipedia is history :((
- Lack of attention, lack of focus, a future prospect for me becoming a Ghajini hero someday :) (atleast I will get Asin ;))
- horrible writing skills (blogs, reports, I cant write anything properly now)
- lack of movie gyan and watching very few movies
- a whole lot of keywords, but everything is in air. I first thought Fin was grounded, but slowly as I understand it in a better way, that too is highly Airy (financial crisis was bound to happen)
- loosing touch with zillions of my friends back across India...
- less sleep
- no more following news and random data and discussing it over ...
- no more roaming around half the hostel block and doing bakk...
- no time and no money-> (-5.5 lakhs) and further drain of cash :)
Overall the first year has been a bit disappointing for me, or maybe I expected a bit too much... but there were good moments, and they came in company of my nice of no-brainers like me here. They have been together in all the great fun here...
Memories from my Div although didn't make me that senti and all today, but they would linger around.
Maybe I talk about thing in extreme extremes, maybe its not that bad.
Just this internship in Himachal and then I am BACK :)
Although the long term plan or Strategy ( as me and my roomie recall, the most used/abused word this year) remains to minimize my un-learning and maximize sleeping time :)
Situation: Studying Convertibles and Business Law before that, have exams tomorrow
Song: Pardesi, Toshi, Dev-D...the one with 3 dancers and abhay deol drinking, right now my While(1) song :D
This movie would have surely triggered a discussion on nihilistic intentions of Dev back in Bangalore... right now they talk only about the music which is good, but something else missing
At almost of the end of three trims it has been,
- a fight for marks, dirty one at times, me being a party to this constant usage of rand() function...
- my database of facts eroding, that too eroding badly. Desipedia is history :((
- Lack of attention, lack of focus, a future prospect for me becoming a Ghajini hero someday :) (atleast I will get Asin ;))
- horrible writing skills (blogs, reports, I cant write anything properly now)
- lack of movie gyan and watching very few movies
- a whole lot of keywords, but everything is in air. I first thought Fin was grounded, but slowly as I understand it in a better way, that too is highly Airy (financial crisis was bound to happen)
- loosing touch with zillions of my friends back across India...
- less sleep
- no more following news and random data and discussing it over ...
- no more roaming around half the hostel block and doing bakk...
- no time and no money-> (-5.5 lakhs) and further drain of cash :)
Overall the first year has been a bit disappointing for me, or maybe I expected a bit too much... but there were good moments, and they came in company of my nice of no-brainers like me here. They have been together in all the great fun here...
Memories from my Div although didn't make me that senti and all today, but they would linger around.
Maybe I talk about thing in extreme extremes, maybe its not that bad.
Just this internship in Himachal and then I am BACK :)
Although the long term plan or Strategy ( as me and my roomie recall, the most used/abused word this year) remains to minimize my un-learning and maximize sleeping time :)
Situation: Studying Convertibles and Business Law before that, have exams tomorrow
Song: Pardesi, Toshi, Dev-D...the one with 3 dancers and abhay deol drinking, right now my While(1) song :D
This movie would have surely triggered a discussion on nihilistic intentions of Dev back in Bangalore... right now they talk only about the music which is good, but something else missing
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