कुछ बाराह साल का था मैं, जब मैंने पहली बार भगवान् को देखा, वो नीले रंग का मुकुट पहेनता था अपने घुंघराले बालो के ऊपर, और एक भारी लकड़ी की गदा थी उसके पास, और अपने चमत्कार से वोह दुनिया के सबसे महान गेंदबाजों का नाश कर रहा था. उस साल था विश्व कप के उपलक्ष पर उसने दौड़ो की झड़ी लगा दी थी, और शेन वारने नमक गेंदबाज़ को तो उस महान ने नेस्तनाबूद ही कर दिया था.
पर फिर वोह दिन भी आया, जब कलकत्ता की रणभूमि पर ९१/२ के स्कोर पर वोह आउट हुआ, और उसके बाद कलकत्ता की जनता ने उस देवता के अभाव मैं मैदान को भस्म कर दिया, लोग कहते है वोह शिवजी का दुःख था की उस नन्हे भगवान् के आउट होने पर उन्होंने उस दिन कलकत्ता पर आग बरसाई. पर उस रात मैं सो नहीं पाया, और उन आँखों मैं कही कुछ पानी की बूँदें ज़रूर थी.
१९९६ का वोह साल और मायनों मैं भी ऐतिहासिक था, जब इन्टरनेट नामक तकनीक मेरी दुनिया मैं आई. एक घर्र्र घर्र करते संगणक के सामने बैठ कर आप दुनिया मैं कही भी चिट्ठी लिख सकते थे. हॉट मेल , याहू, और मेरे आज के नाम से जुडी एक पोर्टल काफी प्रसिद्ध हुए.
पर मुझे क्या पता था, की कुछ १० सालो बाद, इन्टरनेट के जरिये मैं उन महान खेल के क्षणों को संभाल के रख पाऊंगा, जिनका इतिहास मैं कोई सानी नहीं, और जो मेरे दिल के बेहद करीब रहेंगे. इसी का प्रयास करते हुए हम कुछ मित्रो ने मिल कर "पेन द गेम" की स्थापना की. इसके पहले ही वर्ष मैं इसने indibloggies पुरस्कार समारोह मैं भारत के सबसे बेहतरीन खेल ब्लॉग होने का गौरव प्राप्त किया.
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