My blog has moved!

You should be automatically redirected in 6 seconds. If not, visit
http://beingdesh.com
and update your bookmarks.

Sunday, December 26, 2010

गीत नया गाता हूँ

बचपन से ही मेरी राजनीति मैं काफी रूचि रही है। ९० के दशक मैं भारतीय राजनीति मैं खासे उलटफेर हुए, परन्तु उनमे से सबसे रोचक क्षण तब आया जब अटलजी ने प्रधानमंत्री का पद संभाला। बचपन में मैंने एक दिन पुस्तकालय से एक किताब उठायी, अटलजी की जीवनी जो रोचक भी थी, और काफी कुछ सिखाती थी। मुझे उनकी कवितायेँ पढना भी काफी पसंद आया। उनके बारे में समाचार पत्र में पढना, दूरदर्शन पर उन्हें सुनना काफी अच्छा लगा करता था।

अब जब में उन दिनों को वापिस देखता हू, तो पाता हूँ की राजनीति से सारा रस ही छीन गया हैं। परिवारवाद और घोटालो से घिरी यह राजनीति में उन अच्छे वाद-विवादों, रस भरी कविताओं, अच्छे वक्ताओ, और इमानदार लोगो की खासी कमी है। ऐसा नहीं की उन दिनों स्त्थिथि कुछ बेहतर थी, परन्तु अटलजी जब तक इसका हिस्सा थे, तब तक एक उम्मीद थी, और भरोसा भी था। अटलजी का राजनीति से दूर होना, मेरे और मेरे कई मित्रो का इस विषय से रूचि खोने का भी कारण बना।

२५ दिसम्बर को अटलजी ने अपना ८६वा जनादीन मनाया। मैं उनकी लम्बी आयु की कामना करता हूँ, और उम्मीद करता हूँ की भविष्य मैं हमें उन जैसे कुछ निर्विवाद, भरोसेमंद और प्यारे नेता मिले। अभी मैंने उनकी किताब मेरी ५१ कवितायेँ पढ़ रहा हूँ, सोचा मेरी पसंदीदा कविता के साथ इस लेख का अंत करू,

टूटे हुए तारो से फूटे वासंती स्वर,
पत्थर की छाती से उग आया नव अन्जौर,
झरे सब पीले पट,
कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूँ।
गीत नया गाता हूँ।

टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी?
अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी।
हार नहीं मानूंगा,
रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूँ।
गीत नया गाता हूँ।

No comments: